जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असअद मदनी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, गृह मंत्री, और भाजपा अध्यक्ष को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की
नई दिल्ली, 31 अगस्त: जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असअद मदनी ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के हालिया मुस्लिम विरोधी बयानों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। मौलाना मदनी ने कहा कि ये बयान न केवल अनुचित हैं, बल्कि संवैधानिक और नैतिक सिद्धांतों के साथ धोखेबाज़ी हैं। मौलाना मदनी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष को एक लिखित पत्र भी भेजा है जिसमें असम के मुख्यमंत्री के लगातार असंवैधानिक बयानों की सूची संलग्न है और उनसे तुरंत कार्रवाई की मांग की गई है। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस पर स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह भी किया है।
मौलाना मदनी ने जोर देकर कहा कि संविधान के तहत मुख्यमंत्री के पद की मांग है कि वह सभी लोगों के साथ न्याय और निष्पक्षता के साथ पेश आएं। लेकिन मुख्यमंत्री सरमा इस बुनियादी सिद्धांत की लगातार अनदेखी कर रहे हैं। विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि "मैं पक्षपाती रहूंगा, यही मेरा सिद्धांत है” और आगे कहा कि "मैं मियाँ मुसलमानों को असम पर कब्जा नहीं करने दूंगा।” ये बयान ऐसे समय में आए हैं जब ऊपरी असम में 30 से अधिक उपद्रवी समूहों ने बंगाली मुसलमानों को क्षेत्र खाली करने की धमकी दी है।
मौलाना मदनी ने इस बात पर बल दिया कि ऐसे संवेदनशील समय में मुख्यमंत्री को साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिए कदम उठाने चाहिए, न कि विभाजनकारी बयान देकर ऐसे उपद्रवियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। मौलाना मदनी ने कहा कि सरमा के बयानों से न केवल सामाजिक अस्थिरता बढ़ेगी, बल्कि असम में पहले से मौजूद जातीय और धार्मिक खाई और गहरी होगी।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री एक भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक को "मियाँ” कहकर अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, मुख्यमंत्री यह कहकर कि 2041 तक असम मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य बन जाएगा, और किसी भी कार्य को "जिहाद” बताकर और अन्य अनुचित आरोपों का उल्लेख करके, नफरत और साम्प्रदायिक ज़हर फैला रहे हैं।
मौलाना मदनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस संदेश की याद दिलाई जो उन्होंने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में दिया था कि "संविधान हमारा मार्गदर्शक सिद्धांत है।” असम के मुख्यमंत्री को इस संदेश को गंभीरता से लेने और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों और शपथ को याद करने की आवश्यकता है कि वे राज्य के सभी लोगों के प्रमुख हैं।