मदनी ने केंद्रीय मंत्रियों के बयानों पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की सराहना की

याचिकाकर्ता जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि देश में ऐसा माहौल बनाया जाता है कि बुलडोजर ने न्याय कर दिया

मौलाना मदनी ने केंद्रीय मंत्रियों के बयानों पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की सराहना की

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाईयों के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और सचिव मौलाना नियाज अहमद फारूकी की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अंतरिम आदेश जारी किया है कि देश के किसी भी कोने में 1 अक्टूबर तक बुलडोजर नहीं नहीं चलाया जाएगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथ, रेलवे लाइनों और जलाशयों पर अतिक्रमण पर फिलहाल लागू नहीं होगा, लेकिन बुलडोजर न्याय का महिमामंडन स्वीकार नहीं किया जाएगा।

जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन पर आधारित पीठ ने यह निर्देश जारी करते हुए कहा कि किसी भी अपराध या घटना के बाद किसी के घर को गिराने की फिलहाल अनुमति नहीं है। कोर्ट ने इन मामलों की अगली सुनवाई के लिए 1 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय के आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कानूनी अधिकारियों के हाथ इस तरह से नहीं बांधे जा सकते लेकिन पीठ ने जवाब देने से इनकार कर दिया और कहा कि अगर विध्वंस की कार्रवइयां दो सप्ताह के लिए रोक दी जाएं तो आसमान नहीं गिर जाएगा।

अदालत ने कहा कि उसने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह निर्देश जारी किया है। "अगर एक भी अवैध विध्वंस होता है, तो यह संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम अनाधिकृत निर्माण के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन प्रशासन जज नहीं बन सकता। सुनवाई के दौरान जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकील एमआर शमशाद और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड फर्रुख रशीद समेत कई अहम वकील मौजूद रहे।
न्यायालय ने सवाल किया कि 2024 में अचानक संपत्तियों को क्यों ध्वस्त किया गया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि वह अनाधिकृत निर्माणों को ध्वस्त करने के अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी करने का इरादा रखती है। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अगली तारीख तक कोर्ट की अनुमति के बिना तोड़फोड़ पर प्रतिबंध है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि एक ‘नैरेटिव’ बनाया जा रहा है कि एक खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि बाहर की आवाजें कोर्ट को प्रभावित नहीं कर रही हैं। हम इस समय, किस समुदाय का मामला है, इसमें नहीं जाएंगे। अगर एक भी अवैध विध्वंस होता है, तो यह संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

अदालत ने इस बात पर घोर नाराजगी व्यक्त की कि पिछले आदेश के बाद (जहां उसने निर्देश जारी करने का इरादा व्यक्त किया था) केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों द्वारा ऐसे बयान दिए गए कि "बुलडोजर चलते रहेंगे।” जस्टिस गवई ने कहा कि 2 सितंबर के बाद ऐसी धमकियां और दलीलें पेश की गईं, क्या यह हमारे देश में होना चाहिए?
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि याद रहे पिछली तारीख पर अदालत ने देश भर में दिशानिर्देश जारी करने की मंशा व्यक्त की थी ताकि इस आशंका को दूर किया जा सके कि कई राज्यों के अधिकारी, आरोपियों के घरों को सजा के रूप में ध्वस्त कर रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए, पक्षकारों को मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। इस आदेश के बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने सुझाव पेश किए।

पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में दायर याचिकाओं का संबंध दिल्ली के जहांगीरपुरी में अप्रैल 2022 के विध्वंस अभियान से था, जिसे बाद में रोक लगा दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि अधिकारी सजा के तौर पर बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सितंबर 2023 में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल देव ने सरकार के रवैये पर चिंता जताई थी। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घर के अधिकार का बचाव किया और ध्वस्त किए गए घरों के पुनर्निर्माण की मांग की थी। मध्य प्रदेश और राजस्थान में विध्वंस की कार्वाइयों के विरुद्ध तत्काल राहत के लिए याचिकाएं जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा हाल ही में दायर की गईं, इसके बाद यह सुनवाई हो रही है।

जमीयत उलमा हिंद द्वारा प्रस्तुत की गई गाइडलाइन के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
(1) प्रशासन या स्थानीय निकाय ऐसे अधिकारियों को नियुक्त करेंगे जो विध्वंस से संबंधित अदालतों या संबंधित अधिकारियों के प्रति जवाबदेह होंगे। (2) यह अधिकारी डिवीजनल कमिश्नर या उसके समकक्ष अधिकारी को रिपोर्ट करेंगे। (3) विध्वंस का फैसला करने से पूर्व अधिकारी को क्षेत्र का सर्वे करना होगा ताकि यह निर्धारित किया किया जा सके कि कितने घर स्थानीय निकायों के कानूनों के तहत विध्वंस के लिए पात्र हैं (4) उन घरों की सूची तैयार की जाएगी जिन्हें पूरे या आंशिक रूप से ध्वस्त किया जाना है (5) प्रभावित घरों के मालिकों या रहने वालों को विध्वंस से कम से कम 60 दिन पहले एक लिखित नोटिस दिया जाएगा।
(6) नोटिस में विध्वंस के कारण बताए जाएंगे और इसे हाथ से, रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाएगा और नगर निगम की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा (7) नोटिस स्थानीय भाषा में भी प्रदान किया जाएगा (8) विध्वंस से 10 दिन पूर्व अधिकारी को एक हलफनामा दायर करना होगा जिस में यह प्रमाणित किया जाएगा कि नोटिस मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार दिया गया है और इसे डिवीजनल कमिश्नर के कार्यालय में जमा करवाया जाएगा (9) प्रभावित व्यक्ति 15 दिनों के भीतर नोटिस के खिलाफ अपील कर सकते हैं, और संबंधित प्राधिकारण 15 दिन के भीतर सुनवाई के बाद निर्णय लेगा। (9) अपील के विचाराधीन होने की स्थिति में, जब तक निर्णय नहीं आता, विध्वंस नहीं किया जा सकता (11) यदि अपील खारिज हो जाए तो उसमें रहने वालों को 10 दिन का समय दिया जाए ताकि वह अपनी जगह खाली कर लें। (12) तोड़फोड़ केवल एक या कुछ घरों को निशाना बनाकर नहीं की जानी चाहिए। अधिकारियों को पूरे क्षेत्र में अवैध निर्माणों की पहचान करनी होगी और सभी विध्वंसों के लिए एक पूर्व निर्धारित समय तय करना होगा। (13) किसी एक घर को तक ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि पूरे क्षेत्र के अवैध निर्माण का निष्पक्ष मूल्यांकन न कर लिया जाए। (14) इन सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाएगा और पीड़ित व्यक्तियों को पर्याप्त मुआवजा प्रदान किया जाएगा। (15) उल्लंघन को अदालत की अवमानना माना जाएगा जैसा कि डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है। यह दिशानिर्देश राज्य अधिकारियों द्वारा की जाने वाली विध्वंस की गतिविधियों में पारदर्शिता, न्याय और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं जिन्हें जमीअत उलमा-ए-हिंद के सीनियर वकील एमआर शमशाद ने तैयार किया है।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी का बयान

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई का स्वागत करते हुए कहा कि देश में ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि बुलडोजर को न्याय का प्रतीक माना जाता है, जो न्यायिक प्रक्रिया और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रियों के गैरजिम्मेदाराना बयानों पर संज्ञान लेकर सराहनीय बात कही है। हम मांग करते हैं कि ऐसे बयानों पर तुरंत रोक लगाई जाए ताकि न्याय सर्वपरि रहे और कानून का दुरुपयोग न हो۔

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